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जैनेंद्र कुमार

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जैनेंद्र कुमार

जैनेंद्र कुमार का जीवन परिचय तथा उनकी रचनाएं

जीवन परिचय :- जैनेंद्र कुमार का जन्म अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक कस्बे में सन् 1905 ई० में हुआ था। बचपन में ही इनके पिता का देहांत हो गया। इनका पालन-पोषण इनके मामा तथा माता ने किया। इनकी शिक्षा हस्तिनापुर के गुरुकुल में हुई। यही इनका नामकरण भी हुआ था। इनके घर का नाम आनंदीलाल था। सन 1919 ई०में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पंजाब से उत्तीर्ण की।

इनकी उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय में हुई। सन् 1921 ई० में इन्होंने पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस के असहयोग-आंदोलन में भाग लिया। इसके पश्चात माता से प्रेरणा पाकर वे व्यापार करने लगे। व्यापार में लाभ होने पर भी ये उसमें अधिक दिनों तक टिक न सके। फिर पत्रकारिता की ओर झुके, किंतु इन्हें उसी समय जेल जाना पड़ा। जेल में इन्होंने स्वाध्याय से साहित्य-सृजन का कार्य प्रारंभ किया। इनकी पहली कहानी ‘खेल’ विशाल भारत में सन् 1928 ई० में प्रकाशित हुई थी। तभी से ये निरंतर साहित्य- सृजन में संलग्न थे। ‘परख’ उपन्यास पर अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। सन् 1988 में इनका देहांत हो गया।

कृतियां :- जैनेंद्र कुमार ने उपन्यास, कहानी, निबंध, संस्मरण आदि हिंदी गद्य की अन्य विधाओं को समृद्ध किया है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

उपन्यास परख, सुनीता, त्याग-पत्र, कल्याणी, सुखदा, व्यतीत, जयवर्धन,
मुक्ति-बोध

कहानी – फासी, जयसंधि, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, एक रात दो चिड़िया, पाजेब

निबंध संग्रह – प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, मंथन, सोच-विचार, काम, प्रेम और परिवार

अनूदित साहित्य – मंदालिनी (नाटक), पाप और प्रकाश (नाटक), प्रेम में भगवान (कहानी-संग्रह)।

संस्मरण- ये और वे।
इसके अतिरिक्त इन्होंने कुछ ग्रंथों का संपादन भी किया है।

प्रश्न – जैनेंद्र कुमार की साहित्यिक सेवाओं का परिचय दीजिए

साहित्यिक परिचय – जैनेंद्र कुमार जी की साहित्य-सेवा का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत है। मौलिक कथाकार के रूप में वे जितने अधिक निखरे हैं, उतने ही निबन्धकार और विचारक के रूप में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का सहज परिचय दिया है। उनकी साहित्यिक सेवाओं का विवरण इस प्रकार है –
उपन्यासकार के रूप में जैनेंद्र जी ने अनेक उपन्यासों की रचना की है। इनका पहला उपन्यास परख नाम से सन् 1929 ई० में प्रकाशित हुआ। जैनेंद्र जी की उपन्यास कला अत्यधिक संयत और प्रभावपूर्ण है। उन्होंने व्यक्ति की विविध समस्याओं को परखने का प्रयास किया है। इस पदक में हृदय और बुद्धि का समन्वित प्रयोग हुआ है। उनके उपन्यासों में चिंतन भी है और विश्लेषण भी। जैनेंद्र जी के प्राय: सभी उपन्यासों में दार्शनिक और अध्यात्मिक तत्वों का समावेश है।

कहानीकार के रूप में – जैनेंद्र की प्रथम कहानी ‘खेल’ सन् 1928 में ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुई। इसके बाद यें कहानी और उपन्यास निरंतर लिखते रहें। कहानी के रूप में इन्होंने कथा- साहित्य में एक नवीन युग की स्थापना की। इन्होने कहानी को कला की दृष्टि से आधुनिक रूप प्रदान किया।

गद्य साहित्य में स्थान – जैनेंद्र जी ने मनोविज्ञान-प्रधान कहानियों और उपन्यासों की एक धारा को प्रारंभ किया। इन्होंने मानव जीवन की गहन समस्याओं, सामाजिक जीवन की जटिलताओं को अपने साहित्य में व्यक्त किया। हिंदी के कहानीकारों और उपन्यासों में इनकी गणना उच्चकोटि की मानी गई है। इस प्रकार जैनेंद्र कुमार जी ने एक सजग चिंतक साहित्यकार के रूप में हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया।

जैनेंद्र कुमार की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए ।

भाषागत विशेषताएं – जैनेंद्र जी की भाषा में ओज है, प्रवाह है और चमत्कार है। इनकी भाषा में अंग्रेजीपन बहुत अधिक मात्रा में है। कहीं-कहीं तो ऐसा लगने लगता है जैसे पहले अंग्रेजी के वाक्य बनाकर फिर अंग्रेजी शब्दों के स्थान पर हिंदी के पर्यायवाची शब्द रख दिए गए हैं। जैनेंद्र जी के निबंधों की भाषा मूलतः चिंतन की भाषा है। वे सोचा हुआ न लिखकर सोचते हुए लिखते हैं। इस कारण विचारों में कहीं-कहीं उलझन सी आ जाती है।

शैलीगत विशेषताएं – जैनेंद्र जी की शैली अनेक रूपधारिणी है। प्रायः प्रत्येक रचना में उसका नया रूप है। इन्होंने सामान्यरूप से अपने कथा साहित्य में व्याख्यात्मक और विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है।

विचारात्मक शैली – यहां विचारों की प्रधानता है, विचारात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। इनके निबंधों में विचारात्मक शैली अपनायी गयी है, जिसमें प्रश्न, उत्तर, तर्क-व्यक्ति, दृष्टांत तथा व्यंग आदि अनेक रूपों का प्रयोग किया गया है।

व्यवहारिक शैली – इस शैली का प्रयोग कथा-साहित्य एवं उपन्यास-लेखन में किया गया है। इसकी भाषा पूर्णतया व्यवहारिक सरस और सरल है।

व्यंग्यात्मक शैली – इन्होंने कथा- साहित्य व्यंग-प्रधान शैली का अच्छा उदाहरण दिया है, जहां इन्होंने हास्य-व्यंग शैली का मुक्त भाव से प्रयोग किया है।

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