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‘त्यागपथी’ खंडकाव्य

‘त्यागपथी’ खंडकाव्य केेेे आधार पर ‘राज्यश्री’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

'त्यागपथी' खंडकाव्य केेेे आधार पर 'राज्यश्री' का चरित्र-चित्रण कीजिए।

प्रश्न – ‘त्यागपथी’ खंडकाव्य केेेे आधार पर ‘राज्यश्री’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर – ‘राज्यश्री’ के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1. आदर्श नारी — राज्यश्री आदर्श पुत्री, आदर्श बहन और आदर्श पत्नी के रूप में हमारे समक्ष आती है। माता – पिता की यह लाड़ली बेटी यौवनावस्था में ही जब विधवा हो जाती है, तो बन्दी बना ली जाती है। जब वह भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु का समाचार सुनती है, तो कारागार से भाग निकलती है और वन में भटकती हुई आत्मदाह के लिए तत्पर हो जाती है, किन्तु शीघ्र ही वह अपने भाई हर्षवर्द्धन द्वारा बचा ली जाती है। तब वह तन – मन से प्रजा की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर देती है।
2. धर्मपरायणा एवं त्यागमयी— राज्यश्री का सम्पूर्ण जीवन त्याग भावना से परिपूर्ण है। भाई हर्षवर्द्धन उससे सिंहासन पर बैठने का आग्रह करते हैं, परन्तु वह राज्य सिंहासन ग्रहण करने से मना कर देती है। वह राज्य – वैभव का परित्याग करके कठोर संयम एवं नियम का मार्ग स्वीकार कर लेती है। माघ मेले में प्रत्येक पाँचवें वर्ष वह भी अपने भाई की भाँति सर्वस्व दान कर देती है— “लुटाती थी बहन भी पास का सब तीर्थ – स्थल में ।”
3. देशभक्त एवं जनसेविका — राज्यश्री के मन में देशप्रेम और लोक कल्याण की भावना भरी हुई है। हर्ष के समझाने पर भी वह वैधव्य का दुःख झेलते हुए देशसेवा में लगी रहती है। इसी कारण वह संन्यासिनी बनने के विचार को छोड़ देती है तथा अपना सम्पूर्ण जीवन देशसेवा में बिता देती है।
4. सुशिक्षिता एवं ज्ञान सम्पन्न — राज्यश्री सुशिक्षिता है, साथ ही वह शास्त्रों के ज्ञान से भी भली -भाँति परिचित है। आचार्य दिवाकर मित्र संन्यास धर्म का तात्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते हैं और इसे वह स्वीकार कर लेती है। वह आचार्य की आज्ञा का पालन करती है।
5. करुणा की साक्षात् मूर्ति — राज्यश्री करुणा की साक्षात् मूर्ति है। उसने माता-पिता की मृत्यु और बड़े भाई की मृत्यु के अनेक दुःख झेले। इन दु:खों की अग्नि में तपकर वह करुणा की मूर्ति बन गई। इस प्रकार राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। राज्यश्री एक आदर्श राजकुमारी थी, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन पूर्ण सात्विकता और पवित्रता से व्यतीत किया। वह त्यागमयी और करुणामयी थी, इसलिए उसका चरित्र अनुकरणीय है।

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