प्रोफेसर सुंदर रेड्डी
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प्रश्न – प्रो. जी. सुंदर रेड्डी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – जीवन-परिचय – प्रो. जी सुंदर रेड्डी का जन्म सन् 1919 ई. में दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में हुआ था। इन्हें संस्कृत और तेलुगू भाषाओं का असाधारण ज्ञान तो प्रारंभिक शिक्षा में ही हो गया था किंतु उच्च शिक्षा हिंदी में हुई। सन् 1943 ई. में यह आंध्र विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग के अध्यक्ष एवं प्रोफेसर पद पर रहे। ये अपने ही निर्देशन में विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना से हिंदी और तेलुगु साहित्यों के विविध पहलुओं एवं तथ्यों के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध-कार्य कराये। ‘दक्षिण की भाषाएं और उनका साहित्य’ नामक पुस्तक में तो इनकी प्रतिभा का असाधारण परिचय मिलता है। इन्होंने हिंदी भाषा की जो सेवा की है वह एक प्रशंसनिय कार्य हैं। हिंदी के इस महान सेवक की मृत्यु सन् 2005 ई. में हो गया।
कृतियां — 1. साहित्य और समाज, 2. मेरे विचार, 3. हिंदू और तेलुगू : एक तुलनात्मक अध्ययन, 4. भारत की भाषाएं और उनका साहित्य, 5. वैचारिकी, शोध और बोध, 6. तेलुगु दारुल, 7. लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इंडिया आदि।
प्रश्न – प्रो. जी. सुंदर रेड्डी का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर – साहित्यिक परिचय —
प्रोफेसर सुंदर रेड्डी दक्षिण भारत के उत्कृष्ट कोटि के आलोचक तथा मौलिक निबंधकार है। इनकी रचनाओं में भारतीयता और अनुपम तथा मौलिक परिभाषा अनेक रूपों में दृष्टिगोचर होती हैं। आधुनिक वैज्ञानिक युग का प्रभाव इनके विचारों पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, जिसके कारण ही यें साहित्य के भाव-पक्ष तथा कला-पक्ष दोनों में ही आधुनिक बोध और शैली की नवीनता के पक्षधर हैं।
आलोचक के रूप में — प्रो. सुंदर रेड्डी ने अंग्रेजी, तेलुगू, संस्कृत तथा हिंदी भाषाओं के साहित्य का गंभीर अध्ययन किया है, अत: इनकी विचारधारा पर इस समस्त साहित्य के समीक्षा सिद्धांत पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इन्होंने तुलनात्मक अध्ययन की नवीन परंपराओं को जन्म दिया है। आलोचनाएं चाहे कवि की हो, लेखक की हो अथवा भाषा की, ये विषय का तुलनात्मक रूप अवश्य प्रस्तुत करते हैं: जैसे— प्रेमचंद की ‘कहानी-कला’ में इन्होंने शरतचंद्र और ‘प्रसाद’ के साथ प्रेमचंद की तुलना की है। ‘धर्म का विज्ञान’ से धर्म तथा विज्ञान की, ‘हिंदी और तेलुगु : एक तुलनात्मक अध्ययन’ एवं ‘हिंदी-तेलुगु का आदिकालीन साहित्य’ में दोनों भाषाओं के साहित्यों की तुलना है।
निबंधकार के रूप में — इन्होंने साहित्यिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि विषयों पर कई निबंध लिखें। इनके निबंधों में गंभीर अध्ययन, उत्कृष्ट चिंतन, उदार दृष्टिकोण तथा सशक्त अभिव्यक्ति का सुंदर समन्वय दिखता है। यें अपने विषय का विवेचन करने के उपरांत संक्षेप में अपनी संपूर्ण विवेचना का सार सरल और सुबोध भाषा में प्रकट कर देते हैं।
प्रश्न – प्रो. जी. सुंदर रेड्डी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – भाषा-शैली (अ) भाषा की विशेषताएं – प्रोफेसर सुंदर रेडी की भाषा शुद्ध, परिमार्जित, परिष्कृत खड़़ीबोली है। इन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि भाषा के शब्दों का नि:संकोच प्रयोग किया है। इन्होंने अपनी भाषा को मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से प्रभावशाली बनाया है। इनकी भाषा में सरलता, सुस्पष्टता, सहजता और सुबोधता का गुण विद्यमान है। इनकी भाषा विषय और भावों के सर्वथा अनुकूल है।
(ब) शैलीगत विशेषताएं – कठिन से कठिन विषय को सरल एवं सुबोध ढंग से प्रस्तुत करना इनकी शैली की विशेषता है। इनकी शैली भी इनकेेेे भाव एवं विषय के अनुकूल है। मुख्य रूप से इनकी शैली का वर्णन निम्न प्रकार से कर सकते हैं –
विचारात्मक शैली – प्रोफेसर सुंदर रेड्डी ने अपने अधिकतर निबंधों में विचारात्ममक शैली का प्रयोग किया है।
गवेषणात्मक शैली – प्रोफेसर सुंदर रेड्डी के निबंधों में गवेषणात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं। जहां पर इन्होंने इस शैली का प्रयोग किया है, वहांं भाषा अत्यंत गंभीर और परिमार्जित हो गई है। इस शैली में इन्होंने खोजपूर्ण व नवीन विचारों को प्रदर्शित किया है।
आलोचनात्मक शैली – प्रोफेसर सुंदर रेड्डी कि इस शैली में किसी वस्तु, व्यक्ति, साहित्यिक विषय आदि की आलोचना की है। इनके निबंधों में इस शैली का भव्य रूप दिखाई देता है।