भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय, रचनाएं एवं काव्यगत विशेषताएं
प्रश्न – भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवन वृत्त एवं कृतियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा भारतेंदु हरिश्चंद्र का संक्षिप्त-जीवन परिचय लिखिए।
अथवा भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
जीवन परिचय – भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म सन् 1850 ई. मेंं काशी की एक वैश्य कुल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबूूूू गोपाल चंद था। जब भारतेंदु जी नव वर्ष के ही थे तो उनके पिता का देहांत हो गया पिता केे न होने से वे स्कूली शिक्षा को पूरी तरह प्राप्त न कर पाये।
परंतु उनके पिता की प्रतिभा उन्हें विरासत में प्राप्त हुई और अपनी साधना से उन्होंने उस प्रतिभा को और अधिक विकसित किया। राजा शिव प्रसाद द्वारा इन्होंने अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की और स्वाध्याय से मराठी, गुजराती, बंगला, उर्दू का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया। 34 वर्ष 4 माह की अल्पायु में ही भारतेंदु जी का सन् 1885 ई. में मृत्यु हो गया।
रचनाएं – भारतेंदु जी ने लगभग 165 ग्रंथों की रचना की जिसमें नाटक, निबंध, उपन्यास, कविता आदि सभी प्रकार की रचनाएं हैं।
काव्य – कृष्ण चरित्र, रासलीला, प्रेम माधुरी, प्रेम सरोवर, प्रेम प्रलाप, प्रबोधिनी आदि अत्यंत प्रसिद्ध ग्रंथ है।
नाटक – सत्य हरिश्चंद्र, चंद्रावली ,भारत-दुर्दशा, नील देवी, अंधेर नगरी, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
निबंध आख्यान – कश्मीर कुसुम, सुलोचना, मदालसा, लीलावती आदि।
प्रश्न – भारतेंदु हरिश्चंद्र की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
काव्यगत विशेषताएं – (अ) भाव-पक्ष – भारतेंदु जी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। कवि के रूप में इन्होंने अनेक विषयोंं पर कविता की है। इनके काव्य में भक्ति और श्रृंगार का अद्भुुुत सामंजस्य दिखाई देता है। अपनी काव्य साधना में इन्होंने अपनी परंपराओं के पालन के साथ नवीन परंपराओं का भी सूत्रपात किया है। अतः देशभक्ति, सामाजिक सुधार, प्रकृति-चित्रण आदि अनेक विषयोंं का समावेश कर इन्होंने अपनेेे काव्य क्षेत्र को अत्यंत विस्तृत बनाया।
भक्ति क्षेत्र में राधा और कृष्ण के उपासक थे। सूर की शैली में लिखे गए अनेक भक्ति-पूर्ण पदों में विनय, दीनता, सरलता और हृदय की सच्ची अनुभूति के दर्शन होते है। कृष्ण के विषय में उनका भावुकता पूर्ण चित्रण है –
भरित नेह नव नीर नित बरसात सुरस अछोर।
जाति अरब घन कोई लाख नाउत मन मोर।।
देश-प्रेम – भारतेंदु जी केवल भक्ति तथा श्रृंगार संबंधी कविताओं में ही नहीं डूबे थे। बल्कि इनकी हार्दिक अभिलाषा समाज सुधार की थी। ‘भारत-दुर्दशा’ नामक अपने ग्रंथ में भारतेंदु जी ने स्वदेश का गुणगान किया है तथा उनकी दुर्दशा पर भी आंसू बहाया है। जैसे –
अंगरेज राज सुभ साज सबै सुखभारी।
पै धन विदेश चलि जात इहैं बड़ि ख्वारी।।
समाज-सुधार – भारतेंदु जी ने समाज सुधार के लिए अंधेर नगरी आदि नाटकों की रचना की है और सामाजिक कुरीतियों एवं भ्रष्टाचारों के प्रति व्यंग किया है। जैसे –
चूरन अगले सब जो खावैं, दूनी रिश्वत तुरत पचावें।
चूरन सभी महाजन खाते,जिससे जमा हजम कर जाते।।
प्रकृति-चित्रण – भारतेंदु जी ने अपनी अनेक विषयों की कविताओं में प्रकृति का भी चित्रण किया है, किंतु उसमें विशेष आकर्षण नहीं है। यमुना शोभा का एक उदाहरण है –
तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाया।
झटके कुल सों जल परसन हित मनहु सुनिये।।
(ब) कला-पक्ष :- भाषा – भारतेंदु जी की भाषा खड़ी बोली और ब्रज दोनोंं ही है। उन्होंने ब्रजभाषा में गद्य लिखा है और उनकेे गद्य की भाषा खड़ी बोली है। इन्होंने जहां-तहां मुहावरे और कहावतों का भी प्रयोग किया है।
शैली – भारतेंदु जीी के काव्य में अनेक विषयों के साथ अन्य शैलियों केे भी दर्शन होते हैं। इनके भक्ति के पदों में भावनात्मक तथा श्रृंगार के पदों में रीतिकाल की रसपूर्ण शैैैली है। इसके अतिरिक्त इन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का भी प्रयोग किया है। इनके काव्यों में प्रायः सभी रस पाए जाते हैं।
साहित्यक महत्व – भारतेंदु जी हिंदी साहित्य के अच्छे कवि थे। इन्होंने अपनी प्रतिभा से हिंदी को सब प्रकार से समर्थ बनाया तथा भाषा, भाव, शैली आदि में नवीनता का समावेश कर उसे आधुनिक युग के अनुरूप किया। भारतेंदु जी अपनी युग के अच्छेे कवियों में से एक थे।
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