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शिशु की देखभाल

शिशु की देखभाल

शिशु की देखभाल

बहुविकल्पी प्रश्न

1. शिशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है –
( क ) उचित पोषण ( ख ) स्वच्छ वातावरण
( ग ) उचित चिकित्सा ( घ ) ये सभी

2. नवजात शिशु के लिए क्या उत्तम है ?
( क ) फल ( ख ) कोलस्ट्रम
( ग ) चाय ( घ ) कोल्डड्रिंक


3. नवजात शिशु का आहार क्या होना चाहिए ?

( क ) ग्लूकोज ( ख ) माँ का दूध
( ग ) शहद ( घ ) जौ का पानी


4. चार – पाँच माह के शिशु को दूध के अलावा दिया जाने वाला आहार कहलाता है –
( क ) गरिष्ठ आहार ( ख ) पौष्टिक आहार
( ग ) पूरक आहार ( घ ) इनमें से कोई नहीं

 

5. माँ का दूध शिशु के लिए उपयोगी है, क्योंकि

( क ) इसमें रोग से लड़ने की क्षमता होती है । ( ख ) इसमें सभी पोषक तत्त्व पाये जाते हैं ।
( ग ) यह शीघ्र पचता है । ( घ ) ये सभी


6. दूध के अतिरिक्त शिशु का सम्पूरक आहार निम्नलिखित में से कौन – सी आयु में आरम्भ करना चाहिए ?
( क ) एक वर्ष में  ( ख ) छः माह में
( ग ) एक माह में  ( घ ) पाँच वर्ष में

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7. नवजात शिशु दिन भर में सोता है
( क ) 10-12 घण्टे ( ख ) 14-16 घण्टे
( ग ) 23 घण्टे ( घ ) 18-20 घण्टे 

 

8. डी० पी० टी० का टीका किन रोगों की रोकथाम के लिए लगाया जाता है ?
( क ) प्लेग, रेबीज और कुष्ठ रोग
( ख ) तपेदिक, मलेरिया और काली खाँसी
( ग ) डिफ्थीरिया, कर्णफेर और चेचक
( घ ) काली खाँसी, डिफ्थीरिया और टिटनेस


9. शिशु के दाँतों को स्वस्थ रखने के लिए किस पोषक तत्त्व की आवश्यकता होती है ?
( क ) लोहा ( ख ) विटामिन
( ग ) कैल्सियम ( घ ) प्रोटीन

 

10. बच्चे में कैल्सियम की कमी के लक्षण हैं
( क ) हकलाना ( ख ) हड्डियों सम्बन्धी विकार

( ग ) तुतलाना ( घ ) रतौंधी


11. उचित समय पर टीकाकरण –
( क ) बालक की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है ।
( ख ) बाल मृत्यु दर को कम करता है ।
( ग ) बच्चे की जान को खतरा रहता है ।
( घ ) इनमें से कोई नहीं ।

 

12. बी ० सी ० जी ० का टीका निम्न में से किस रोग से बचाव करता है ?
( क ) चेचक ( ख ) डिफ्थीरिया
( ग ) तपेदिक (टी० बी०) ( घ ) टायफॉइड

 

13. बच्चों में अस्थायी दाँतों की संख्या होती है –

( क ) 10 ( ख ) 15
( ग ) 20 ( घ ) 25

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अंक माँ के दूध से शिशु को क्या लाभ होता है ?
उत्तर- माँ का दूध शिशु का एकमात्र प्राकृतिक आहार है । माँ का प्रारम्भिक दूध ( कोलस्ट्रम ) ग्रहण करने की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है । माँ के दूध से शिशु को पोषण प्राप्त होता है तथा उसकी सम्बन्धी सभी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं ।


प्रश्न 2. स्तनपान छुड़ाने से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर- बच्चे को माता के दूध से अलग करना ‘ स्तन त्याग या स्तनपान छुड़ाना ‘ कहलाता है ।


प्रश्न 3. टीकाकरण के लाभ लिखिए ।
उत्तर- टीकाकरण से सम्बन्धित रोगों से बचाव हो जाता है ।

प्रश्न  4. शिशु के पाचन सम्बन्धी रोगों का उल्लेख करें ।

उत्तर- शिशुओं को होने वाले मुख्य पाचन सम्बन्धी रोग हैं— दस्त , कब्ज , पेट में दर्द होना , पेट में चुनचुने होना , दूध हजम न होना तथा जिगर बढ़ जाना ।


प्रश्न  5. पल्स पोलियो अभियान का क्या आशय है ?
उत्तर- पोलियो नामक रोग के पूर्ण उन्मूलन के लिए आयोजित व्यापक अभियान को ‘ पल्स पोलियो ‘ अभियान के रूप में जाना जाता है ।

प्रश्न 6. शैशवावस्था में मुख्य रूप से किस खनिज की अधिक आवश्यकता होती है ?
उत्तर- शैशवावस्था में मुख्य रूप से कैल्सियम खनिज की अधिक आवश्यकता होती है ।


प्रश्न 7. किस तत्त्व की कमी से रिकेट्स रोग होता है ?
उत्तर- विटामिन ‘ डी ‘ की कमी से रिकेट्स नामक रोग होता है ।


प्रश्न 8. लौह तत्त्व की कमी से कौन – सा रोग होता है ?
उत्तर – लौह तत्त्व की कमी से रक्ताल्पता या एनीमिया नामक रोग होता है ।


प्रश्न  9. शारीरिक विकास तथा मानसिक विकास में क्या अन्तर है ?
उत्तर- शारीरिक विकास के अन्तर्गत शरीर के अंगों की वृद्धि तथा परिपक्वता को सम्मिलित किया जाता है , जबकि मानसिक विकास का सम्बन्ध मानसिक क्षमताओं के विकास से होता है।

प्रश्न  10. बच्चों के आहार को सन्तुलित रखने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर- बच्चों के आहार को सन्तुलित रखने के लिए उन्हें दूध के साथ पूरक आहार अवश्य देना चाहिए तथा उनकी आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं का मूल्यांकन करके समुचित मात्रा में पौष्टिक आहार देना चाहिए ।

प्रश्न 11. “शिशु में नियमित शौच की आदत डालना आवश्यक है ।” क्यों ?
उत्तर- शिशु में नियमित शौच की आदत डालने से शिशु के वस्त्र एवं बिस्तर गन्दे होने से बच जाते हैं तथा उसके पाचन तन्त्र पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।

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लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. शिशु के विकास के लिए पौष्टिक आहार का क्या महत्त्व है ?
उत्तर- शैशवावस्था में शारीरिक अत्यधिक आवश्यकता होती है । इसके वृद्धि की दर बहुत अधिक होती है ; अत : इसके लिए पौष्टिक आहार की अतिरिक्त शिशु को ऊर्जा प्राप्त करने के लिए , रोग – प्रतिरोध क्षमता प्राप्त करने के लिए , शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए भी पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार की आवश्यकता होती है ।


प्रश्न 2. दूध के दाँत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- दूध के दाँत – जन्म के उपरान्त प्रारम्भ में निकलने वाले दाँतों को दूध के दाँत कहा जाता है । ये दाँत अस्थायी होते हैं । सामान्य रूप से 6-8 माह के शिशु के ये दाँत निकलने लगते हैं । क्रम- दूध के दाँत या अस्थायी दाँतों के निकलने का क्रम निम्नलिखित रूप में होता है –
( i ) सर्वप्रथम 6-8 माह की आयु में निचले जबड़े के मध्य दो कुतरने वाले कृन्तक दाँत निकलते हैं । ( ii ) इसके दो – तीन माह उपरान्त ऊपर के सामने वाले 4 दाँत निकल आते हैं ।
( iii ) इसके उपरान्त डेढ़ वर्ष की आयु तक कृन्तक दाँतों के दोनों ओर के रदनक दाँत तथा चार दाढे ( molar ) ( दो – दो ऊपरी तथा निचले जबड़े में ) निकल आते हैं ।
( iv ) दो वर्ष के अन्त तक ऊपर – नीचे दो – दो नुकीले दाँत निकल आते हैं ।
( v ) 2.5 से 3 वर्ष के अन्त तक अन्तिम चार दाढ़े भी निकल आती हैं । इस प्रकार लगभग तीन वर्ष को आयु तक कुल 20 दूध के दाँत निकल आते हैं। दाँतों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य – बच्चों के दाँतों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है –
( i ) प्रारम्भ से ही बच्चों में दाँतों की सफाई की आदत डालें ।
( ii ) प्रारम्भ में बच्चों को दाँतों की सफाई के लिए भोजन के उपरान्त गाजर अथवा सेब खाने के लिए दें ।
( iii ) दाँतों के स्वास्थ्य के लिए उचित व्यायाम के लिए बच्चों को डबल रोटी का कड़ा सिका हुआ टुकड़ा चबाने के लिए दें ।
( iv ) बच्चों को कैल्सियम युक्त सीरप दें ।
( v ) कुछ बड़े बच्चों को मुलायम ब्रश से दाँत साफ करना सिखाएँ ।
( vi ) समय – समय पर दंत चिकित्सक से दाँतों की जाँच करवाते रहें ।

 

प्रश्न 3. टिप्पणी लिखिए – बच्चों के विकास में खेल का महत्त्व
उत्तर- बच्चों के सामान्य विकास की प्रक्रिया में खेल का विशेष महत्त्व है । सर्वप्रथम शारीरिक विकास एवं स्वास्थ्य के लिए खेल अति आवश्यक एवं उपयोगी है । खेल से शरीर पुष्ट होता है तथा सक्रिय बनता है । खेल से बच्चे के सामाजिक विकास में भी योगदान प्राप्त होता है । खेल के माध्यम से बच्चे सहयोग , स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा , सहनशीलता तथा अनुशासन जैसे सद्गुणों को सीखते हैं । यही नहीं खेल के दौरान ऊँच – नीच तथा सामाजिक दूरी जैसी बुराइयों का भी अन्त हो जाता है । खेल से बच्चों का संवेगात्मक विकास भी सुचारु होता है । खेल से संवेगात्मक तनाव समाप्त होता है तथा संवेगात्मक स्थिरता प्राप्त होती है । स्पष्ट है कि विकास के सभी पक्षों में खेल का बहुपक्षीय महत्त्व है ।

 

प्रश्न 4. निर्जलीकरण क्या है ? इसके क्या लक्षण हैं ?
उत्तर- बच्चों में प्राय : निर्जलीकरण की समस्या भी उत्पन्न होती रहती है । यदि बच्चों को दस्त एवं उल्टियाँ होने लगती हैं तो बच्चों के शरीर से पानी की पर्याप्त मात्रा निकल जाती है । इससे बच्चे के शरीर में पानी की आवश्यक मात्रा क्रमशः घटने लगती है । इस प्रकार शरीर में जल की सामान्य आवश्यक मात्रा का घट जाना ही निर्जलीकरण या डिहाइड्रेशन कहलाता है । निर्जलीकरण की स्थिति में बच्चे के शरीर में जल की मात्रा क्रमशः घटने लगती है । इससे बच्चे के ओंठ सूखने लगते हैं , चेहरे की रौनक घटने लगती है तथा त्वचा में झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं । निर्जलीकरण की दशा में मूत्र – त्यागने की दर भी घटने लगती है । इसके अतिरिक्त इस दशा में क्रमशः रक्त गाढ़ा होने लगता है तथा रक्त के संचालन में कठिनाई होने लगती है । निर्जलीकरण की दर बढ़ जाने पर गुर्दों की क्रियाशीलता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है तथा शरीर में विभिन्न विजातीय तत्व एकत्रित होने लगते है। यह  स्थिति बच्चे के मृत्यु के लिए भी जिम्मेदार हो सकती है। 

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प्रश्न 4. टिप्पणी लिखिए- ‘ बालक की जिज्ञासा की सन्तुष्टि ।’
उत्तर- बालक के सामने अपार विश्व होता है । उसके जानने के लिए अनन्त विषय होते हैं । यही कारण है । कि बालक की जिज्ञासा – प्रवृत्ति अति प्रबल होती है । अपनी जिज्ञासा – प्रवृत्ति के प्रबल होने के ही कारण बालक अपने माता – पिता तथा परिवार के सदस्यों से निरन्तर तरह – तरह प्रश्न पूछता रहता है । अल्प ज्ञान होने के कारण अनेक बार बालक द्वारा कुछ अतार्किक तथा अनोखे प्रश्न भी पूछ लिये जाते हैं । ऐसे प्रश्नों से कभी – कभी माता – पिता खीज उठते हैं तथा परेशान होने लगते हैं । वे बालक के प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे पाते तथा बालक को डॉटकर चुप कराने की कोशिश करते हैं । माता – पिता का यह दृष्टिकोण अनुचित है । माता – पिता को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए तथा उसे शान्त करने के लिए धैर्यपूर्वक बात करनी चाहिए । बालक की जिज्ञासा की सन्तुष्टि से उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास सुचारु रूप में होता है । इसके अतिरिक्त जिज्ञासा की उचित सन्तुष्टि से बालक के व्यक्तित्व का विकास भी सामान्य रहता है । इसके विपरीत यदि बालक की जिज्ञासा को उचित ढंग से सन्तुष्ट नहीं किया जाता तो बालक के व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । बालक का मानसिक एवं बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो जाता है तथा वह विभिन्न कुण्ठाओं से ग्रस्त हो सकता है ।


प्रश्न 5. टिप्पणी लिखिए – ‘बिस्तर गीला करना ।

उत्तर- बच्चों की एक समस्या है – बिस्तर गीला करना अर्थात् सोते हुए बिस्तर में ही मूत्र त्याग कर देना । शैशवावस्था में तो सभी शिशु बिस्तर में ही मूत्र – त्याग कर देते हैं परन्तु यदि चार – पाँच वर्ष या इससे अधिक आयु का बच्चा प्राय : बिस्तर पर ही मूत्र – त्याग करता रहे तो इसे एक बाल – समस्या माना जाता है । इस असामान्य व्यवहार के कारण बच्चों में हीन भावना विकसित होने लगती है तथा उनका आत्म – विश्वास कम होने लगता है । बिस्तर गीला करने की समस्या के विभिन्न कारण हो सकते हैं ; जैसे — मूत्र – त्याग का उचित प्रशिक्षण न दिया जाना , बिस्तर का आरामदायक न होना , उत्सर्जन संस्थान पर समुचित नियन्त्रण न होना , अधिक मात्रा में तरल पदार्थ ग्रहण करना , पाचन क्रिया का अनियमित होना । इसके अतिरिक्त संवेगात्मक तनाव , भय तथा तिरस्कार , हीन – भावना तथा असुरक्षा की भावना से ही बच्चा इस असामान्य व्यवहार का शिकार हो सकता है । बिस्तर गीला करने की बाल- समस्या का निवारण हो सकता है । इसके लिए समस्या के कारण को खोजकर उसका निवारण किया जाना चाहिए । बच्चों को डाँटना – फटकारना या उसका उपहास नहीं किया जाना चाहिए । बच्चे के तनाव एवं संवेगात्मक अस्थिरता को समाप्त करना चाहिए । सोने से पहले बच्चे को कोई तरल पदार्थ नहीं देना चाहिए तथा मूत्र – त्याग करवाकर ही सुलाना चाहिए ।

 

प्रश्न 6. बच्चों के दाँत निकलते समय की समस्याएँ कौन – कौन सी हैं ? इनका निराकरण आप कैसे करेंगी ?
उत्तर – दाँत निकलने के लक्षण अथवा समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
1. दाँत निकलने के काल में शिशुओं को अत्यधिक कष्ट का अनुभव होता है ।
2. बच्चों को हरे – पीले दस्त होने लगते हैं ।
3. शिशुओं को हल्का ज्वर भी आने लगता है ।
4. दाँत निकलने अवधि में बच्चे प्राय : दूध पीना कम कर देते हैं एवं कष्ट के कारण रोते रहते हैं ।
5. दाँत निकलते समय प्राय : शिशु का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है ।
6. शिशु अस्वस्थ दिखाई पड़ते हैं तथा कमजोर हो जाते हैं ।
दाँत निकलते समय बरतने वाली सावधानियाँ अथवा निराकरण निम्नलिखित हैं –
1. यह बात विशेष ध्यान रखने की है कि शिशु किसी अस्वच्छ वस्तु को मुँह में रखकर न चबाये रोगाणु उसके शरीर में प्रवेश करके उसे रोगी बना सकते हैं । अन्यथा किसी प्रकार रोगाणु उसके शरीर में प्रवेश करके उसे रोगी बना सकते हैं।

2. इस समय शिशुओं को रबर की वस्तु चबाने को देनी चाहिए । बहुत कड़ी वस्तु देने से उसका मुँह कट अथवा छिल सकता हैं।
3. शहद में सुहागा मिलाकर मसूढ़ों पर मलने से दाँत शीघ्र निकल आते हैं ।
4. शिशु को अगर अधिक मात्रा में दस्त हो या तेज ज्वर हो तो डॉक्टरी परामर्श लेना आवश्यक है ।

 

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्तनपान छुड़ाने से क्या आशय है ? शिशु के स्तनपान छुड़ाने में क्या – क्या सावधानियाँ आवश्यक होती हैं ?
उत्तर – स्तनपान छुड़ाना बच्चे को माता के दूध से अलग करना ‘स्तन त्याग’ या ‘स्तनपान छुड़ाना ‘ कहलाता है । जब शिशु की अवस्था 6 माह से 9 माह के बीच हो तो माता को स्तनपान छुड़ाने का अभ्यास शिशु को कराना चाहिए । इस समय उसे ऊपर का दूध तथा अन्य खाद्य पदार्थ देने चाहिए । शिशु को गिलास अथवा प्याले से तरल पदार्थ पिलाने का अभ्यास डालना चाहिए । इससे बच्चे की पाचन क्रिया में वृद्धि होती है । माता को अपना दूध पिलाना धीरे – धीरे कम करते जाना चाहिए । प्राकृतिक रूप से भी जैसे – जैसे बच्चे के दाँत निकलने शुरू होते हैं , वैसे ही माता के दूध पिलाने की शक्ति कम होती जाती है इसलिए शुरू से ही बच्चे को बोतल से पानी पिलाने का अभ्यास कराना चाहिए , जिससे शिशु बड़ा होकर सुगमता से बोतल से दूध पी सके । दूध छुड़ाने के समय माता को का कम सेवन करना से दूध सूखने में सहायता मिलती है । अपने भोजन में भी परिवर्तन कर देना चाहिए । उसे दूध , दलिया , चिकनाई आदि चाहिए । इससे दूध कम बनेगा , साथ ही स्तन पर कपड़े की थोड़ी कसकर पट्टी बाँध लेने से शिशु को माता के स्तनों से दूर करना इतना सरल नहीं है । शिशु कठिनाई से माता का दूध छोड़ता है । कभी – कभी बच्चे दूध छोड़ने में स्वयं भी बहुत परेशान होते हैं , रोते हैं , ऊपर का दूध नहीं पीते तथा उनकी नींद भी कम हो जाती है । इससे माता को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है । माताओं को बड़े धैर्य व शान्ति से दूध छुड़ाने का प्रयत्न करना चाहिए । ऊपर का दूध बोतल में भरकर अथवा चम्मच से पिलाना चाहिए । चम्मच में दूध भरकर स्तनों के समीप ले जाकर बच्चे को पिलाना चाहिए , जिससे उसे लगे कि वह माता का दूध पी रहा है । स्तनपान छुड़ाने में सावधानियाँ शुरू में दूध छुड़ाते समय शिशु को ऊपर का दूध एक बार , फिर दो बार और धीरे – धीरे क्रमशः बढ़ाते रहना चाहिए । सामान्यतया 9 माह की आयु होने पर स्तनपान छुड़ा देना चाहिए ।
स्तनपान छुड़ाने में निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है –
1. माता को दूध धीरे – धीरे छुड़ाना चाहिए , एकदम नहीं । दूध छुड़ाने के समय बच्चे को दिन में एक – दो बार फलों का रस , मुलायम हरी सब्जी का पानी , केला आदि मसलकर देने का अभ्यास करना चाहिए ।
2. शिशु को दिन में एक – दो बार निप्पल वाली बोतल से ऊपर का दूध देना चाहिए ।
3. गर्मी की ऋतु में यथासम्भव स्तनपान नहीं छुड़ाना चाहिए , क्योंकि इस ऋतु में पाचन शक्ति क्षीण होती है , इसलिए शिशु ऊपरी दूध को पचाने में असमर्थ होगा ।
4 .माँ का दूध छुड़ाने के पश्चात् शिशु के आहार में फल , हरी सब्जी , मछली , अण्डे की जर्दी आदि होनी चाहिए ।
5 . ऊपरी दूध से अक्सर बच्चों को कब्ज हो जाता है , इसलिए बच्चों को फलों का रस , भुना हुआ सेब आदि देना चाहिए ।
6. दूध छुड़ाने के पश्चात् बच्चे बहुत चिड़चिड़े व जिद्दी हो जाते हैं । अतः उनके आहार के प्रति बहुत सावधान रहना चाहिए तथा उन्हें प्यार से उचित आहार देते रहना चाहिए ।
7 . आरम्भ से ही बच्चों को पीने वाली वस्तुएँ पहले चम्मच से पिलानी चाहिए , फिर धीरे – धीरे छोटे गिलास से पीने की आदत डालनी चाहिए ।

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