छन्द
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छन्द
छन्द का अर्थ एवं परिभाषा :-
छन्द शब्द की उत्पत्ति ‘छिदि’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है -ढकना। छन्द उस पद-रचना को कहते हैं, जिसमें अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्रा की गणना के साथ-साथ विराम एवं गति से सम्बद्ध नियमों का पालन किया गया हो ।
छन्द के भेद :-
सामान्यता: वर्ण और मात्रा के आधार पर छन्दों के निम्न चार भेद हैं –
( 1 ) मात्रिक छंद
( 2 ) वर्णिक छंद
( 3 ) उभय छंद
( 4 ) मुक्तक छंद
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1. मात्रिक छन्द :- मात्रिक छंदों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, वर्णो के लघु और गुरु के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता। इन छंदो के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत रहती है। मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं – सम, अर्द्धसम और विषम।
2. वर्णिक छन्द :- जिन छन्दों में केवल वर्णों की संख्या और नियमों का पालन किया जाता है , वे वर्णिक छन्द कहलाते हैं । घनाक्षरी, रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, मुक्तक, दण्डक आदि वर्णिक छन्द हैं ।
3. उभय छन्द :- जिन छन्दों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता एक साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छन्द कहते हैं।
4. मुक्तक छन्द :- इन छन्दों को स्वच्छन्द छन्द भी कहा जाता है, इनमें मात्रा और वर्णों की संख्या निश्चित नहीं होती। भावों के अनुकूल यति-विधान, चरणों की अनियमितता, असमान गति आदि मुक्तक छन्दों की विशेषताएँ हैं। ये अपनी स्वेच्छाचारिता का भरपूर परिचय देते हैं।
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प्रमुख मात्रिक छन्द :-
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं पर ध्यान दिया जाता है । मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं –
( i ) सममात्रिक छन्द
( ii ) अर्द्धसममात्रिक छन्द
( iii ) विषममात्रिक छन्द
सममात्रिक छन्द :-
जिन शब्दों के चारों चरणों की मात्राएं या वर्ण एक समान हो उसे सममात्रिक छंद कहते हैं।
अर्द्धसममात्रिक छन्द :-
जिनमें पहले और तीसरे दूसरे और चौथे चरणों की मात्राएं अवार्ड समान हो उसे अर्द्धसममात्रिक छंद कहते हैं।
विषममात्रिक छन्द :-
जिन शब्दों में चार से अधिक छ: चरण हो उसे विषममात्रिक छंद करते हैं।
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1. चौपाई –
चौपाई सम मात्रिक छंद है, इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं। अंत में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है।
उदाहरण :-
S l l l l l l I I I I S S
बंदउँ गुरुपद पदुम परागा।
l l l l S l l l l l l S S
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा॥
l l l S l l l S l l S S
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
l l l l l l l l l l l l S S
समन सकल भव रूज परिवारू।।
स्पष्टीकरण –
इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ है, अतः यह चौपाई छन्द है।
2. दोहा :-
यह अर्द्धसम मात्रिक छंद है, इसमे चार चरण होते हैं।पहले और तीसरे चरण में 13 -13 मात्राएं तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं। इसके विषम चरणों के आदि में जगण नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में गुरु लघु होना चाहिए।
उदाहरण –
S S l l S S l S S S S l l S S
मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोई
S l l S S S l S S l l l l l l S l
जातन की झाई परै, स्वाम हरित दुति होइ
स्पष्टीकरण :-
इस पद के पहले और तीसरे चरण में 13 – 13 मात्राएं हैं। दूसरे और चौथे चरण में 11 – 11 मात्राएं हैं। अतः यह दोहा छंद है।
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3. सोरठा :-
यह अर्द्धसम मात्रिक छंद है, इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13 -13 मात्राएं होती है। पहले और तीसरे चरण के अंत में गुरु लघु आते हैं और कहीं कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहा का उल्टा होता है।
उदाहरण :-
S l l S l l S l l l l l l l S l l l l l
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।
l l S S l l l l S l l S S l S l l l l l
करऊ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर सयन॥
स्पष्टीकरण :-
इस पद में प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएं हैं।
अतः यह छन्द सोरठा है।
4. रोला :-
यह सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है।
उदाहरण :-
S l S l l S l l S l l l l l l l S l l
कोउ पापिह पंचत्व प्राप्त सुनि जमगन धावत l
l l l l S l l S l l l l S S l l S l l
बनि बनि बावन वीर बढ़त चौचंद मचावत ।।
S l l S S S l l l l S S l l S l l
पै तकि ताकी लोथ, त्रिपथगा के तट लावता l
S S S I I S I S I S I I I I S I I
नौ द्वै, ग्यारह होत तीन पाँचहि बिसरावत।।
स्पष्टीकरण :-
इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं हैं। 11 – 13 पर यति है, अत: यह छन्द रोला है।
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5. कुण्डलिया :-
यह विषम मात्रिक एवं संयुक्त छन्द है । इस छन्द का निर्माण दोहा और रोला के संयोग से होता है । इसमें 6 चरण होते हैं। आरम्भ में दोहा और पश्चात् में दो छन्द रोला के होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण :-
S S S I I S I S I I S I I I I S I
साईं बैर न कीजिए गुरु पंडित कवि यार।
बेटा बनिता पौरिया यज्ञ करावन हार।
यज्ञ करावनहार राजमंत्री जो होई ।
विप्र पड़ोसी वैद्य आपुको तपै रसोई।
कह गिरिधर कविराय जुगन सों यह चलि आई।
इन तेरह को तरह दिये बनि आवै साई।
स्पष्टीकरण :-
इस पद्य के प्रथम एवं द्वितीय चरण दोहा है तथा आगे के चार चरण रोला है। दोनों के कुंडलित होने से कुंडलिया छंद का निर्माण हुआ है।
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