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लोकोक्तियाँ

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1. अन्धा क्या चाहे दो आँखें – इच्छित वस्तु का प्राप्त होना ।

वाक्य  प्रयोग – चींटी पानी में डूबी जा रही थी, तभी उसकी दृष्टि बहकर पास आते पत्ते पर पड़ी । अन्धा क्या चाहे दो आँखें । वह उस पर जा चढ़ी ।

2. अन्धा बांटे रेवड़ी , फिर – फिर अपने को ही दे – स्वार्थ लाभ , सम्पूर्ण लाभ स्वयं उठाना ।
वाक्य प्रयोग – आज के भ्रष्ट नेता अन्धा बाँटे रेवड़ी, फिर – फिर अपने को ही देने वाली उक्ति चरितार्थ कर रहे हैं ।

3. अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए – जिससे सहानुभूति की सम्भावना न हो , उसके सामने दुःख – दर्द की बातें करना व्यर्थ है ।
वाक्य प्रयोग – रामू उस कंजूस व्यक्ति से सहायता माँग रहा था, यह ठीक वैसा ही लगता है – अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए ।

4. अक्ल बड़ी या भैंस – शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि अधिक बड़ी होती है ।
वाक्य – प्रयोग – शशांक हर काम को बलपूर्वक ही करना चाहता है । उसने अक्ल बड़ी या भैंस वाली कहावत नहीं सुनी है ।

5. अधजल गगरी छलकत जाय – अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति अधिक बोलता है । अथवा अज्ञानी लोग ही अपने ज्ञान की शेखी बघारते हैं ।
वाक्य – प्रयोग – रतन ने गायन सीखना प्रारम्भ करते ही स्वयं को गायक कहना शुरू कर दिया है । सच ही कहा गया है — अधजल गगरी छलकत जाय ।

6. अपना हाथ जगन्नाथ – अपने हाथ से किया गया कार्य ही विश्वसनीय और कल्याणकारी होता है ।
वाक्य – प्रयोग – संजेश किसी भी काम में दूसरों की सहायता अवश्य लेता है । उसे पता ही नहीं कि अपना हाथ जगन्नाथ होता है ।

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7. अपनी करनी पार उतरनी – अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है
वाक्य – प्रयोग – अपने कर्मों के कारण ही रहमत जेल में है । सच ही कहा है अपनी करनी पार उतरनी ।

8. अपनी – अपनी ढपली, अपना – अपना राग अथवा अपनी डफली, अपना राग सबका अपनी – अपनी बात कहना ।

वाक्य – प्रयोग – रानी की बर्थडे पार्टी में कुछ लोग अपनी – अपनी ढपली , अपना – अपना राग अलाप रहे थे ।

9. अन्त भला तो सब भला – परिणाम अच्छा रहता है , तो सब कुछ अच्छा कहा जाता है ।
वाक्य – प्रयोग – गुरमीत साइकिल प्रतियोगिता में प्रारम्भ में पीछे था, पर अन्त तक जाते – जाते उसने ऐसी गति दिखाई कि वह पहले नम्बर पर आ गया । लोग कहने लगे – अन्त भला तो सब भला ।

10. आँख के अन्धे गाँठ के पूरे – मूर्ख और हठी ।
वाक्य – प्रयोग – रत्नेश के परिवार वाले क्रोधी ही नहीं, आँख के अन्धे और गाँठ के पूरे भी हैं ।

11. आँखों के अन्धे नाम नयनसुख – गुणों के न होने पर भी नाम गुणवान जैसा होना ।
वाक्य – प्रयोग – राकेश का भाई एकदम कमजोर और डरपोक है, पर उसका नाम महावीर है । इसी को कहते हैं – आँखों के अन्धे नाम नयनसुख ।

12. आ बैल मुझे मार जान – बूझ कर परेशानी को आमन्त्रण देना ।
वाक्य – प्रयोग – रवि और श्याम की लड़ाई तो पहले से ही थी, तुमने उन्हें क्यों छेड़ा, बेवजह ही परेशानी को आमन्त्रण दे दिया । तुम पर यह उक्ति सही लागू होती है – ‘ आ बैल मुझे मार ‘ ।

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13. आगे जाए घुटने टूटे , पीछे देखे आँख फूटे – जिधर जाएँ उधर ही संकटा
वाक्य – प्रयोग – चोरी होने पर थाने जाते हैं, तो पुलिसवाले रुपये माँगते हैं, नहीं जाते हैं  तो रात में चोरों का मनोबल बढ़ता है अर्थात् आगे जाए घुटने टूटे पीछे देखे आँख फूटे ।

14. घर का भेदी लंका ढाए / ढावे विश्वासघाती सगा – सम्बन्धी विनाश का कारण होता है ।
वाक्य – प्रयोग – विभीषण ने भगवान राम का साथ देकर घर का भेदी लंका ढाए वाली लोकोक्ति चरितार्थ की थी ।

15. घर की मुर्गी दाल / साग बराबर – घर की वस्तु का महत्त्व नहीं समझा जाता ।
वाक्य – प्रयोग – रंजना के भाई विज्ञान के प्रोफेसर हैं, पर वह विज्ञान दूसरे शिक्षक से पढ़ती है । ठीक ही कहते हैं – घर की मुर्गी दाल / साग बराबर ।

16. घर खीर तो बाहर भी खीर – यदि व्यक्ति अपने घर में सुखी और सन्तुष्ट है , तो उसे सब जगह सुख और सन्तुष्टि का अनुभव होता है ।
वाक्य – प्रयोग – बेटे ! यूँ भूखे पेट घर से न निकलो । क्या जाने कब भोजन नसीब हो ! कहा गया है – घर खीर तो बाहर भी खीर ।

17. घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने – झूठी शान दिखाना।

वाक्य – प्रयोग – रंजू की गरीबी के कारण शिक्षक ने उसकी बहुत सहायता की , पर आज वही रंजू घर में नहीं दाने , अम्मा चली भुनाने वाली कहावत को चरितार्थ करने में लगी रहती है।
18. घी कहाँ गिरा, दाल में – सही स्थान पर उपयोग होना ।

वाक्य – प्रयोग – मोहन ने अपने भांजे की पढ़ाई पर पैसा खर्च कर ठीक ही किया है अर्थात् यहाँ घी कहाँ गिरा , दाल में वाली कहावत चरितार्थ होती है ।

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19. घोड़े को लात आदमी को बात  – घोड़े के लिए लात और सच्चे आदमी के लिए बात का आघात असहनीय होता है ।

वाक्य – प्रयोग – माँ बताती है कि किसी को भी कटु वचन नहीं बोलने चाहिए , क्योंकि घोड़े को लात और आदमी को बात बहुत दुःख पहुँचाती है ।

20. चलती का नाम गाड़ी – जिससे काम चल जाए, वही ठीक है ।
वाक्य – प्रयोग – टी.वी. छोटा हो या बड़ा, काम तो एक ही करता है । मैं तो बस चलती का नाम गाड़ी वाली बात मानता हूँ ।

21. चादर के बाहर पैर पसारना – हैसियत से अधिक खर्च करना ।
वाक्य – प्रयोग – रंजना के माँ – बाप गरीब हैं, पर रंजना की आदत चादर के बाहर पैर पसारने की है ।

22. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – कुछ दिनों की खुशियाँ ।
वाक्य – प्रयोग – युक्ता का बेटा दो दिन उसके साथ रहा, फिर विदेश चला गया । यह तो चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात वाली बात हो गई ।

23. चिड़िया उड़ गई फुर्र – अभीष्ट व्यक्ति या वस्तु का प्राप्ति से पूर्व ही गायब हो जाना / मृत्यु हो जाना ।
वाक्य – प्रयोग – निःसन्देह जोसेफ शुरू से अपने प्रतिद्वन्द्वी पर हावी रहा, मगर कुश्ती के अन्त दाँव गलत चलने के कारण चिड़िया उड़ गई फुर्र को चरितार्थ करती हुई जीत उसके हाथ से निकल गई ।

24. चिराग तले अँधेरा – अपना दोष स्वयं को दिखाई नहीं देता है ।
वाक्य – प्रयोग – अधिकतर लोगों की चिराग तले अँधेरे वाली स्थिति है ।

25. एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा – अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना ।
वाक्य – प्रयोग – पहले तो रमेश शराबी ही था, पर अब तो जुआरी भी हो गया । पड़ोसी कहने लगे एक तो करेला , दूसरे नीम चढ़ा ।

26. एक थाली के चट्टे – बट्टे  – सबका एक – सा होना ।
वाक्य – प्रयोग – रंजीत के परिवार में सबका व्यवहार एक थाली के चट्टे – बट्टे जैसा है ।

27. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं –  एक ही समय दो – दो विचारधाराओं का पालन नहीं हो सकता ।
वाक्य – प्रयोग – सास और बहू में तो जरा भी नहीं पटती । एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं ।

28. एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय – सबको प्रसन्न करने के प्रयास में कोई भी प्रसन्न नहीं होता ।
वाक्य – प्रयोग – बस प्रभु से प्रेम कर लो, फिर किसी की सहायता की जरूरत नहीं होगी । एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय ।

29. एक पंथ दो काज – एक ही उपाय से दो कार्यों को करना ।

वाक्य – प्रयोग –मैं तो बैंक में पैसे जमा करने गया था, मेरे पुराने मित्र से भी भेंट हो गई । मेरे लिए तो एक पंथ दो काज हो गए ।

30. ओखली में सिर दिया तो मूसली से क्या डरना –  कठिन काम प्रारम्भ करने पर कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए ।

वाक्य – प्रयोग – पुरुषार्थी व्यक्ति ही किसी कार्य को सम्पन्न कर पाते हैं, क्योंकि जो ओखली में सिर डालते हैं, वे मूसली से कभी नहीं डरते ।

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